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12 Feb 2019 · 1 min read

मानव

बाहर चंदन सा महक रहा,
लेकिन अंदर से खारा है।

आने जाने की चक्की में,
पिसता मानव बेचारा है।

बस लगा रहा अपनी धुन में,
जीवन भर समझ नहीं पाया –

सब यहीं धरे रह जायेगे,
जिस दिन टूटा इकतारा है।
-लक्ष्मी सिंह

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