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10 Feb 2019 · 2 min read

तकिया

“पिताजी जैसे ही मुझे मालूम हुआ आपने अपना छोड़ कर अलग किराये का कमरा लिया है तो मैं अपनेआप को रोक नहीं सकी और फौरन चली आई ।”
संगीता ने दुखी मन से पिताजी से
कहा ।
” हाँ बेटी तूने अच्छा किया ।”
रामलाल ने कहा ।

“लेकिन ऐसा क्या हुआ जो आपने इतना बड़ा फैसला किया मैं तो सोच रही थी आपसे सुखी और कोई नही होगा भईय्या – भाभी आफिसर है , पोते पोती मकान गाडी नौकर और अच्छा खाना सब कुछ तो है ।”
संगीता ने कहा ।

दुखी मन से रामलाल ने कहा :
“बेटी जिसने पूरी जिन्दगी ईमानदारी की रोटी नमक खाई है जो स्वाभिमानी जीवन जिया है उसके घर में रात रात पार्टियाँ हो रिश्वतबाजी चलती हो पैसा ही ईमानधर्म हो , सब अपने मन के हो अनुशासन , नैतिकता नहीं हो ऐसे माहौल में मैं नही रह सकता ।
मैं अपनी छोटी सी पेंशन से अपना गुजर बसर कर लूँगा कम से कम मुझे आत्मसंतुष्ट तो है ।”
संगीता को याद है वह पुरानी बात जब वह छोटी थी और उसके पिताजी पुलिस विभाग में इन्क्वायरी कैस डील करते थे तब एक इंस्पेक्टर जो सस्पेंड था पिताजी के पास कुछ रूपये ले कर आया था और कैस रफा-दफा करने का कह रहा था तब पिताजी उसका गिरेबान पकड़ कर एसपी के पास ले गये थे और कहा था :
” साहब गलत काम करके ये सस्पेंस होते है और वही उम्मीद ये मुझ से करते है ।”

अपनी ईमानदारी के कारण ही उनकी पूरी नौकरी उसी सेक्शन में गुजरी थी और आज भी लोग उनका नाम ईज्जत से लेते है ।”

रामलाल कह रहे थे :
“बेटी हम तकिया आराम के लिए लगाते है लेकिन अगर वही तकिया परेशानी का सबब बन जाए तो हटा देना ही अच्छा है । “

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