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10 Feb 2019 · 1 min read

"बसंत"

बासंती परिधान पहन,
देख धरा इठलाती है।
अपना नवरूप सजा,
खुद पर ही इतराती है।
धानी चुनरी ओढ़ सखी सी,
अपनी ही मनवाती है।
केसरिया मन लिये फिरे,
गुनगुन भ्रमरों सी गाती है।
आज विहग बन देखो,
उड़ने को मचलाती हैं।।
@निधि…

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