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4 Feb 2019 · 1 min read

दुश्वारियां

उफ़ ये इश्क़ की दुश्वारियाँ …..

दिल लगा के तो देख कभी नीलम
ग़र समझनी, इश्क़ की दुश्वारियाँ।

इक जुनूँ और महज़ दिवानापन नहीं,
बेखुदी खुद रचती है अजब अय्यारियां।

रोज़ आशिक, बनकर हीर रांझा
करते मर जाने की नव तैयारियाँ।

उठे प्रेम का कीड़ा जब सुनो,
काम नहीं आती समझदारियां।

रंग-ए-इश्क वो भी नीलम तेरा
लाइलाज नित बढ़ती बिमारियां।

नीलम शर्मा ✍️

1 Like · 549 Views
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