Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Feb 2019 · 2 min read

मेरा मन !!

देवी और सज्जनों आप सभी को मेरा नमस्कार ! आप सभी का आभार प्रकट करते हुए वन्दन एवं अभिनन्दन करता हूँ ! सादर अभिवादन करता हूँ! मेरे प्यारे मित्रों ! मैं कोई कवि व लेखक नहीं हूँ ,कवि व लेखक तो न जाने किस सोच के सागर मे डूब कर न जाने कैसे-कैसे मोती निकाल लेते है? फिर भी मैं जो कुछ लिखता हूँ ,वह मेरे अन्तरात्मा की घुटन होती हैं जो आप लोगों के बीच रखकर मुझे बहुत ही शान्ति का अनुभव होता है। मेरा कलम अपना विचार उसी पर लिखता हैं , जिसे हम प्राय: अपने इर्दगिर्द घूमता हुआ देखते हैं । ये रचना मैं आप लाेगो के बीच निवेदित करता हूँ ,,,

मेरा मन!!
———————

न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता हैं यह देखकर ?
जिस नवजवानो से आशा कि एक दीप जलाए बैठे थे,
जिसे देश का गुरुर व नीव मान बैठे थे,
जब इनके सपने को देखता हूँ शराब की बोतलों मे खनकता हुआ देखकर,
इनके ख्वाबों को देखता हूँ धूम्रपान की धुंए मे उड़ते हुए देखकर।
जिस माँ ने अपने लाल को सीने से सीचा, अपने आँचल मे पाला,
उसके लाल को गन्दे नाली में पड़ा हुआ देखकर।
न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता हैं यह देखकर ?
जिस माँ शब्द कि परिभाषा नहीं , उस माँ कि गाली हर नवजवान कि जुबा पर देखकर,
जिस रक्षाबंधन पर बहन कि मान-मर्यादा कि कसमें खाये ,
उस बहन कि गाली हर नवजवान के जुबा पर देखकर।
न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता यह देखकर?
बूढें पिता को तेज बारिश में,भरी सड़क पर जिम्मेदारी के बोझ से लदे हुए, रेलगाड़ी पकड़ते हुए देखकर,
बूढ़ी माँ को दूसरे के घर चौका-बर्तन करते हुए देखकर।
न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता यह देखकर?
बूढ़े माँ-बाप को जवान बेटी कि विवाह के चिंता मे, दहेज कि आग मे जलते हुए देखकर।
बूढ़े पिता को साईकिल रिक्शा खीचते हुए,
उस पर नवजवान को सवार होता हुआ देखकर।
न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता यह देखकर?
किसी नवजवान को वासना से लिप्त, भरी हुई सड़क पर देखकर,
किसी भूखे-नंगे गरीब बच्चे को फुटपाथ पर बैठे, आशा कि एक दीप जलाए देखकर।
न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता यह देखकर?
ऐसे नर नही ”नरपशु ” हैं , धिक्कार है इन्हें इस धरा पर ,
कोई अधिकार नहीं है इस धरा पर ।
न जाने क्यों मेरा मन व्यथित हो उठता यह सब देखकर?

– शुभम इन्द्र प्रकाश पाण्डेय
ग्राम व पोस्ट कुकुआर, पट्टी , प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 324 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

सही को गलत से दूर रहना चाहिए
सही को गलत से दूर रहना चाहिए
Sarita Pandey
*आवागमन के साधन*
*आवागमन के साधन*
Dushyant Kumar
धर्मरोष
धर्मरोष
PANKAJ KUMAR TOMAR
दर्द लफ़ज़ों में
दर्द लफ़ज़ों में
Dr fauzia Naseem shad
मैं
मैं
विवेक दुबे "निश्चल"
..
..
*प्रणय प्रभात*
आजादी विचारों की
आजादी विचारों की
Roopali Sharma
सफलता को प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम और दृढ़ आत्मविश्वा
सफलता को प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम और दृढ़ आत्मविश्वा
DR. RAKESH KUMAR KURRE
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
4644.*पूर्णिका*
4644.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
देश का हिन्दू सोया हैं
देश का हिन्दू सोया हैं
ललकार भारद्वाज
कब तक चाहोगे?
कब तक चाहोगे?
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
A Piece of Advice:
A Piece of Advice:
पूर्वार्थ
इक आदत सी बन गई है
इक आदत सी बन गई है
डॉ. एकान्त नेगी
ना मसले अदा के होते हैं
ना मसले अदा के होते हैं
Phool gufran
आइल दिन जाड़ा के
आइल दिन जाड़ा के
आकाश महेशपुरी
नेह
नेह
Dr.sima
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बस क्या था जो वो शख़्स भूल गया मुझे,
बस क्या था जो वो शख़्स भूल गया मुझे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आसान जिंदगी
आसान जिंदगी
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
भावना का कोई मोल नहीं
भावना का कोई मोल नहीं
नूरफातिमा खातून नूरी
बाहरी चकाचौंध से उबकर
बाहरी चकाचौंध से उबकर
पूर्वार्थ देव
अंधेरा मन का
अंधेरा मन का
Rekha khichi
सभी नेतागण आज कल ,
सभी नेतागण आज कल ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
जीवन
जीवन
लक्ष्मी सिंह
चंद्र प्रकाश द्वय:ः मधुर यादें
चंद्र प्रकाश द्वय:ः मधुर यादें
Ravi Prakash
खुद स्वर्ण बन
खुद स्वर्ण बन
Surinder blackpen
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
'अशांत' शेखर
"हमने पाई है आजादी प्राणों की आहुति देकर"
राकेश चौरसिया
" दोषी "
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...