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12 Jan 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

क्या सुनाऊँ वक़्त ने मुझसे कहा जो
हर सितम हर वक़्त अपनों का सहा जो

बंद दरिया का मचलना हो गया क्यों
पूछता वह मौज में सब दिन बहा जो

अब समंदर चीखता है रोज लेकिन
क्यों सुने वो आग को भड़का रहा जो

वर्ष भर अब धूल की बरसात होगी
खंडहर बरसों पुराना है ढहा जो

चोरियाँ कुछ आज रुकनी चाहिए थीं
चोर ही अब कोतवाली कर रहा जो

इश्क का जादू ‘अमर’ अब चल चुका है
ये ग़ज़ल सब कह रही दिल ने कहा जो

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