Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
7 Jan 2019 · 1 min read

रिश्तें

“रिश्तें” तो ऐसे बनातें है लोग जैसे पुराने “कपड़े” बदल कर नये कपड़े “बदलतें” है,
“मतलबी” मिज़ाज़ में “रिश्तें” मतलब से नये “मतलबी” रिश्तें बनातें है,
‘निभाना” हो ग़र “रिश्ता” तो वो ही “फ़रेबी” हमें “नज़रअंदाज़” कर नज़दीक से “गुज़र” जातें है,
“सुकूँन” है मेरे दिल में “पुराने” हर “रिश्तों” को दिल में “सँजो” के रखता हूँ और आज बना “दोस्त” अपनी “हद” में “निभाता” हूँ।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”

Loading...