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6 Jan 2019 · 1 min read

मुक्तक

अंज़ाम ज़िन्दग़ी का अफ़साने जैसा है।
कभी हँसाने कभी रूलाने जैसा है।
जब कभी टकराते हैं तूफ़ान यादों के-
किसी का ज़िक्र ख़ुद को तड़पाने जैसा है।

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

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