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30 Dec 2018 · 1 min read

नववर्ष

नववर्ष की नयी सुबह
नयी कलम और नयी डायरी
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
मंत्रमुग्ध हो जाएँ दुनिया सारी

खामोश जुबां के शब्द बनूं
टूटे सपनो के टुकड़े चुनूं
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
भटके अपनो की राह बुनूं

दीन-दुखी जन की पीड़ा
हर दिल तक पहुँचा पाऊँ
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
सबके दिल को छू जाऊँ

निर्बल का मान बचा पाऊँ
निर्धन की जान बचा पाऊँ
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
हर दिल को रोशन कर जाऊँ

जंग लगे दिल के दरवाजों
के तालों को तोड़ सकूँ
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
सबके दिलों को जोड़ सकूँ

झूठ का पर्दाफाश करूँ
और सच का मैं आगाज़ करूँ
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
सबके दिलों में राज करूँ

प्रकाश का दिपक बन जाऊँ
आस का आशीष बन आऊँ
काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि
खुद ही कविता बन जाऊँ
___________________
__✍ कवि प्रवीण प्रजापति “प्रखर”

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