Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Dec 2018 · 1 min read

बुनते स्वप्न्न

स्वप्न जो बुने हमने
वो कांच के थे
टूट कर ध्वस्त हो गए वो स्वप्न्न
जिसे तपाया कम आंच पे थे

स्वप्न्न जो बुने हमने
वो मिट्टी के थे
टूट बिखर वो बुने स्वप्न्न
मिट्टी में ही मिल गयें

स्वप्न्न जो बुने हमने
वो फूल से थे
खिले थे खिलखिलाए से थे कल तक
आज मुरझा कर जमीं पे बिखरे पड़े है

तो क्या स्वप्न्न देखना छोड़ दें
गतिमान जीवन मे चलना छोड़ दें
अभी तो चलना बहुत है
बुने जो स्वप्न्न साकार हो के रहेंगे

—हाँ मुझे स्वीकार है
सारे स्वप्न्न जो हमने बुनें
आधे अधूरे अपरिपक्व थे!

उनींदी नींद और अर्धचेतना में
स्वप्नों का निर्माण था
टूटे कांच की भांति
मिले माटी के मानिंद
फूलों सा मुरझाया था!

—हाँ, मुझे विश्वास है
पुनः अवचेतन को मिलेगी चेतन
परिकल्पना पाएंगी संजीवन
बुनेंगी स्वप्न्न दृढ़ निश्चय संग
और प्रत्यक्ष दिखेंगी
आकार लिये साकार लिये

स्वप्न्न को संकल्प का रूप धरना होगा
तन हो या मन हो रक्तरंजित
दुखों के ताप को सहना होगा
शूल चुभे पांव में या व्रज प्रहार हो सीने पे
ले संकल्प आगे बढ़ना होगा

स्वप्न तो होते ही है
साकार होने को
बस संकल्प हो प्रबल
स्वप्न्न संग जीने को…..

Language: Hindi
2 Likes · 317 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

3071.*पूर्णिका*
3071.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती पर सादर नमन
नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती पर सादर नमन
Dr Archana Gupta
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Shweta Soni
तुम अगर साथ हो तो...
तुम अगर साथ हो तो...
TAMANNA BILASPURI
मन राम हो जाना ( 2 of 25 )
मन राम हो जाना ( 2 of 25 )
Kshma Urmila
तू मौजूद है
तू मौजूद है
sheema anmol
कुछ लोग जन्म से ही खूब भाग्यशाली होते हैं,
कुछ लोग जन्म से ही खूब भाग्यशाली होते हैं,
Ajit Kumar "Karn"
सोचता हूँ
सोचता हूँ
शशांक पारसे "पुष्प"
दोस्ती
दोस्ती
Dr fauzia Naseem shad
*किसी से भीख लेने से, कहीं अच्छा है मर जाना (हिंदी गजल)*
*किसी से भीख लेने से, कहीं अच्छा है मर जाना (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
समझ आये तों तज्जबो दीजियेगा
समझ आये तों तज्जबो दीजियेगा
शेखर सिंह
13, हिन्दी- दिवस
13, हिन्दी- दिवस
Dr .Shweta sood 'Madhu'
Ghazal
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
कितने सावन बीत गए.. (सैनिक की पत्नी की मीठी मनुहार)
कितने सावन बीत गए.. (सैनिक की पत्नी की मीठी मनुहार)
पं अंजू पांडेय अश्रु
दोहे - डी के निवातिया
दोहे - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
"किताबें"
Dr. Kishan tandon kranti
మంత్రాలయము మహా పుణ్య క్షేత్రము
మంత్రాలయము మహా పుణ్య క్షేత్రము
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
स्वयं को सुधारें
स्वयं को सुधारें
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
सुहागन वेश्या
सुहागन वेश्या
Sagar Yadav Zakhmi
म्हारौ गांव धुम्बड़िया❤️
म्हारौ गांव धुम्बड़िया❤️
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
एक महिला जिससे अपनी सारी गुप्त बाते कह देती है वह उसे बेहद प
एक महिला जिससे अपनी सारी गुप्त बाते कह देती है वह उसे बेहद प
Rj Anand Prajapati
अपना रिश्ता नाता
अपना रिश्ता नाता
Sudhir srivastava
रुख़्सत
रुख़्सत
Shyam Sundar Subramanian
सोंच
सोंच
Ashwani Kumar Jaiswal
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
Ramji Tiwari
मुर्दा यह शाम हुई
मुर्दा यह शाम हुई
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
ऐसा नही है कि ! तुमसे प्यार करते हुए किसी और से हल्का फुल्का
ऐसा नही है कि ! तुमसे प्यार करते हुए किसी और से हल्का फुल्का
पूर्वार्थ
पिता
पिता
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
- अपने जब पानी में बैठ जाए -
- अपने जब पानी में बैठ जाए -
bharat gehlot
काश कभी ऐसा हो पाता
काश कभी ऐसा हो पाता
Rajeev Dutta
Loading...