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18 Dec 2018 · 1 min read

मुक्तक

ज़मीं को लाख जोतो वो कभी शिकवा नहीं करती,
लुटा धन धान अपने नाम एक पौधा नहीं करती,
उसे गिर गिर के उठने का हुनर भी ख़ूब आता है,
दीये की लौ हवा के ज़ोर से टूटा नहीं करती।

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