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13 Dec 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/पत्थर का देवता हांसिल हुआ

इल्ज़ाम इक नया हर दफ़ा हांसिल हुआ
हमें तो मुहब्बत में बस इतना हांसिल हुआ

हिज्र में उसकी ये कैसा नशा हांसिल हुआ
कुछ आहें कुछ दर्द अनकहा हांसिल हुआ

ख़ुद ही का दिल था भटकता रहा बे-आसरा
तलब की आस में टुकड़ा टुकड़ा हांसिल हुआ

अना के शीश पे बैठा मिला कल वो सितमगर
हमनें देखा तो उसका दुज़ा चेहरा हांसिल हुआ

बेवजह शिकायतों की आयतें थी उसके चेहरे पर
वफ़ा के बदले हमें तो फ़कत तमाशा हांसिल हुआ

कौन कहता है मुहब्बत में कुछ हांसिल नहीं होता
हमें तो हुआ लोगों,ताअल्लुक़ खोखला हांसिल हुआ

और क्या बतलायें हम कि क्या क्या हांसिल हुआ
इक पत्थर का सनम पत्थर का देवता हांसिल हुआ

~अजय अग्यार

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