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13 Dec 2018 · 1 min read

वक्त

उजड़े चमन की बुलबुलों से क्या गुफ्त़गू करें
मयकदे के शोर-ओ -शऊर से कहीं दूर हम चलें
शराब-ओ- शबाब रहा कभी मेरा शगल नहीं
वक्त गुजर गया बहुत चलो अब अपने वतन चलें

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