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12 Dec 2018 · 1 min read

कर्त्तव्य

कर्त्तव्य
जिस मातृवक्ष से चिपक
किलक दिखलाया
जीवन पाया
शैशव रहा मचलता है
आज वही
पुत्र का फ़र्ज निभा रहा है
दूध का कर्ज यूँ चुका रहा है
भौतिकता के वशीभूत
कर्त्तव्यविमूढ
उसी वक्ष को
तानों से छलता है
मातृवक्ष में ममत्व
अब भी फलता है
कर्त्तव्य, कब-कब
कैसे रूप बदलता है?
-©नवल किशोर सिंह

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