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9 Dec 2018 · 1 min read

मज़बूरी

जब भी कदम आगे बढाने चाहे ।।
कुछ ऐसी मज़बूरी आती रही।। बस आगे बढने के लिए तरसते रहे।।
दुनिया और भी हमें सताती रही।।
कभी खून के रिश्ते रहे रास्ता रोकते।।
कभी दुनिया क्या कहेगी ये सोचती रही।। जैसे पतझड़ को आस होती है बहार आने की।।
वैसे मैं भी अपनी मंजिल की उम्मीद पे जिंदा रही।। हर चेहरे मे ढूंढती रही मैं प्यार।।
प्यार के बदले नफरत ही मिलती रही।। किस किस से मैं शिकायत करूं।।
मैं तो खुद ही अपने आप को समझ न सकी।।।
कृति भाटिया।

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