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9 Dec 2018 · 1 min read

ज़िन्दगी आजकल

ज़िन्दगी आजकल
आबशार-ए-ग़ज़ल

क्यों बनाते रहे
रेत के हम महल

अम्न हो चार सू
क्यों न करते पहल

देखकर हादिसे
दिल गया है दहल

इक ख़ुशी पाने को
जी रहा है मचल

गुनगुनाएं भ्रमर
खिल रहा है कमल

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