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6 Dec 2018 · 1 min read

अब वो बाते नही होगी

अब वो बाते नही होगी जिनका कोई मुकद्दर नही
अब वो आसु नही होंगे वास्ता जिसका बिते कल से था

अब होना पडेगा उन्हे भी जो इरादो मे है ।
अब मुलाकातें युॅ बढ घट जाये
पर नये फ़ैसलो से रुबरु होंगे रोज
थे पह्लु सिक्के के दो अब तक अब एक होंगे वो भी

अब ना बातो से मुकरना है
मुक्कमल करना है उनसे

लिखे है चन्द शब्द सपनो की सुची मे
अब उन्हे करना है ।

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