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30 Nov 2018 · 1 min read

गीत

गीत
धुंध हटी अम्बर से रश्मि चौखट लांघ चली।
दर,मुंडेर, छत तानी चूनरी शुभ्र धवल मलमली।

है ये कैसी घाम सताती नहीं ह्रदय ना तन को।
मन प्रफुल्ल कर ओजस दे कर भरमाती मन को।
उतर रही अम्बर से भू पर नूतन बाल वधू सी।1

शुभ प्रभात सिन्दूरी सुनहला मूंगे माणिक जडि़त रुपहला।
धरती के आंचल से निकला नदियों में नहाने को मचला।
लगा लगा गोते वारि में रवि नाप रहा दूरी भू नभ की।। 2

पिछवाड़े में चिहुक चिहुक चर फुदक फुदक खग आये।
मचा रहे हैं शोर नीम पर गुड़हल पर भवरें गायें ।।
कहीं नाचते मोर बाग वन कहीं मोरनी खड़ी ठगी सी। 3

हुए मगन मद मस्त गगनचर बना रहे नित नूतन तृण घर।
कहीं प्रणय कहीं विरह कहीं पर वीत राग का विपुल समन्दर।
कोटि कोटि संकल्प संजो कर मुदित मही अहवात सजी सी।4

धानी धरती उन्मुख अंबर,शरद रितु का मदन महीना।
हर्षित हैं नर नारि देख कर हुआ सार्थक बहा पसीना।
सपने लेंगे मूर्त रूप जब फसल कटेगी सोने सी।5
स्वरचित

मीरा परिहार ‘मंजरी’30 /11/2018

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