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27 Nov 2018 · 1 min read

ग़ज़ल- मेरी आशिक़ी भी तू है, तू ही है हब़ीब मेरा।

मेरी आशिक़ी भी तू है, तू ही है हब़ीब मेरा।
तेरा साथ जो मिला है, तू बना नसीब मेरा।।

तुझे चाहती है दुनियाँ, तेरे हैं हजारों आशिक़।
तुझे मैंने रब जो माना, न कोई रक़ीब मेरा।।

था अकेला इस ज़हां में, न कोई था मेरा साथी।
मिटी दूरियां जहां की, हुआ रब क़रीब मेरा।

गमे इश्क़ का सताया, न जुदाई मार डाले।
तू ही तो दर्द दिल का, तू ही है तबीब मेरा।।

मेरी इश्क़ है इब़ादत, पढ़ूं क़लमा प्यार के मैं।
मुझे राह अब दिखाना, तू बने खतीब मेरा।।

परवरदिगार आलम, हैं सबाल जग में भारी।
करे ‘कल्प’ भी सभी हल, बने तू मुजीब मेरा।।

✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
अरकान- मुतफ़ाएलुन फ़ऊलुन मुतफ़ाएलुन फ़ऊलुन
(11212 122 11212 122)
हबीब मित्र, नसीब- किस्मत, तबीब- चिकित्सक
ख़तीब- उपदेशक/धर्म मंत्री, मुजीब-उत्तरदाता

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