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23 Nov 2018 · 1 min read

देश बचाओ

धू-धू जलती आग बुझाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

चोर ख़जाना लूट रहा
घर जर्ज़र हो टूट रहा
रिसता गागर लो संज्ञान
समृद्धि होती निष्प्राण
आँखें खोलो जाग भी जाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

विविध जाति-धर्म के कीड़े
बाँट रहे हैं बस्ती-नीड़े
यही षड्यंत्र हो रही आज
डालो फूट और करो राज
इनके झांसे में ना आओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

दीप हुई है तम से त्रस्त
उम्मीद की किरणें होती अस्त
साहस किसमें,मुँह खोले कौन
सबने साध रखा है मौन
नवक्रांति की दीप जलाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

सिसकी यह जन-जन की सुन
चूस रहे अपने ही खून
घोर घटा संकट की छाई
अपनी इज्ज़त दाव पे आई
पुनः खोई गरिमा लौटाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

लुटेरों का बढ़ता शासन
डोल रहा है राजसिंहासन
अपाहिजों के वश में सत्ता
देश बना है सूखा पत्ता
उपवन की हरियाली लाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

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