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17 Nov 2018 · 1 min read

*मेरी माँ"*

“मेरी माँ”

न किसी गद्य मे, न किसी पद्य मे
न रस मे ना छंद मे
न कविता ना कोई गीत
न कोई उपमा ना अलंकार
समर्थ नही तुम्हे परिभाषित करना
असंभव है ये बताना कि तुम क्या हो ” माँ”…
करुणा स्नेह ममता संबल साहस प्रेरणा क्या कहूँ…
बहुत कम है ,तुम्हारे लिये कुछ भी कहना
कहाँ से लाऊं वो शब्द वो अक्षर वो लिपि वो स्याही
जो तुम्हारा प्रतिबिम्ब बना सके
निःसंदेह मैं असमर्थ हूँ .”माँ”….
तुम निराकार हो तुम परमब्रम्ह हो,
कोई उपमा नही तुम्हारी
तुम तो अनुपम हो….
क्योंकि…..
” तुम माँ हो”….
सिर्फ “माँ”हो…
“माँ तुम्हे प्रणाम”……

नम्रता सरन “सोना”
भोपाल म.प्र.

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