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10 Nov 2018 · 2 min read

माँ जिसमे जग समाया

माँ जिसमे सारा जग समाया हुआ है, माँ के बिना संसार की कल्पना भी नही की जा सकती है । इस सृष्टि की जन्म दात्री माँ ही है । जिस प्रकार एक बगीचे में तरह तरह के फूल खिलते है, उसी प्रकार घर परिवार और समाज मे अनेक रिश्ते होते है, किंतु सबसे अधिक ममता, प्यार, त्याग और स्नेह का रिश्ता माँ का ही होता है । कहा भी गया है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है किंतु माता कभी भी कुमाता नही होती है । पुत्र कितना भी बड़ा हो जाये किंतु माँ की ममता कभी भी कम नही होती है । पुत्र कितना भी सक्षम हो, किंतु माँ को हमेशा चिंता लगी रहती है । परिवार में माँ ही होती है, जो सबसे ज्यादा ख्याल रखती है ।
माँ प्रथम गुरु होती है, उन्हें ईश्वर के तुल्य माना जाता है । माँ अपने संतान के सुख के लिए हर कष्ट को उठाने के लिए सदैव तत्पर रहती है । बचपन में कितनी ही बार माँ स्वयं गीले में सोकर अपनी नींद को त्याग कर संतान को सुलाती है । माँ की महिमा अनन्त है, जिसे शब्दो मे बाँधा जाना संभव नही है । कहा भी गया है कि अगर पुत्र अपना शीश काटकर भी माँ को समर्पित कर दे, फिर भी वो अपनी माँ की ममता का कर्ज नही चुका सकता है ।
आज के इस दौर में माँ को अपने संतान के भावी भविष्य को स्वर्णिम बनाने के लिए पुत्र वियोग को सहना पड़ता है , किंतु यह वियोग एक ऐसी खाई में धीरे धीरे परिवर्तित होता जा रहा है, जो कभी भी भर नही पाती है । बड़ा दुःख होता है जब माता पिता को पुत्र , नाती, पंथी, होते हुए भी वृद्धाश्रम में रहना पड़ता है । या अपने ही घर मे कैदी की तरह जीवन बिताने को मजबूर हो जाना पड़ता है । कुछ दिन पूर्व मैंने समाचार पत्र में पढ़ा था, की पुत्र अपनी माँ को अकेला छोड़कर विदेश पैसे कमाने जाता हैं, जब आता है तो घर के अंदर माँ का कंकाल मिलता है, क्या गुजरी होगी उस माँ पर….कल्पना से भी परे है ।
अंत मे दो शब्द यही कहना चाहूँगा की माँ तो वह फूल है जिससे घर, संस्कारो से महक उठता है, घर का एक एक बेजान कोना भी माँ के स्पर्श से प्रफुल्लित हो उठता है । माँ की जितनी सेवा की जाए वो कम है, माँ बोझ नही वह तो परिवार की रीढ़ है । जिस प्रकार धागा माला में सभी मनको को पिरोकर रखता है, उसी प्रकार माँ भी परिवार के प्रत्येक सदस्य को स्नेह, प्रेम, त्याग, खुशी और आशीष से जोड़कर रखती है ।
” माँ रहती है जहाँ ,स्वर्ग बन जाता वहाँ ,
माँ बिना जीवन नही, ममता और प्यार नही ”
–जे पी लववंशी
हरदा, म.प्र.

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