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4 Nov 2018 · 1 min read

ये बन्धन अब मुझको स्वीकार नहीं.!!

मत रोक मुझे भयभीत न कर,मैं सदा कंटीली राह चला.!
मेरे पथ के पतझड़ों में ही नव-नूतन मधुभास पला.!!

मैं हूँ अबाध,अविराम,अथक,अविचल आशुतोष.!
हैं..राह रोकते ये बन्धन अब मुझको स्वीकार नहीं.!!

दोनों ही ओर निमंत्रण है-इस पार मुझे,उस पार मुझे.!
स्वर्णिम विजय सी लगती है,संघर्षों में हर हार मुझे.!!

मैं हूँ अपने मन का राज़ा, इस पार रहूँ,उस पार चलूँ.!
जी चाहे जीतूँ-दुनियाँ!उनकी खुशियों के लिए मैं,हार चलूँ.!!

मेरी पतवारों पर साथी!लहरों की घात नहीं चलती.!
मेरी तो आदत ही ऐसी-सँघर्षों बीच मैं हर बार चलूँ.!!

अब कँहा झुका पाएगा यह विप्लवमय पारावार मुझे.!
इन लहरों के टकराने पर आता है,रह-रहकर प्यार मुझे.!!

✍? आशुतोष शुक्ला

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