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14 Oct 2018 · 1 min read

आज का समाज .....(पियुष राज 'पारस')

मेरी नई कविता
आज के समाज में जो हो रहा है उसी को बयां करने की कोशिश …

उम्र लग जाती है शोहरत कमाने में
वक़्त लगता नही इज्जत गवाने में

पेट मे लात मारने वाले बहुत मिलेंगे
जो भूखे को खिला दे बहुत कम है इस जमाने मे

किसी को किसी की फिकर अब रही कहाँ
सब तो लगे है सिर्फ दौलत कमाने में

ईर्ष्या द्वेष के भाव से भरे पड़े है सब
लगे है सब यहाँ एक दूसरे को जलाने में

कोई छेड़ रहा लड़कियां
तो कोई लगा है उसे पटाने में

किसी का टूटा है दिल यहां
कोई मजनू बन बैठा है मयखाने में

स्वच्छता के नाम पे कर रहे सब ढोंग
सब लगे है अखबार में फोटो छपाने में

जाति-मजहब का पहन के चोला
लगे है सब एक-दूजे को लड़ाने में

सरहद पर शहीद हो रहे न जाने कितने सपूत
ओर नेता लगे है सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने में

सारे विरोधी हो जाते है एकजुट उनके खिलाफ
जो कोशिश करते है देश को आगे बढ़ाने में

©पियुष राज ‘पारस’
दुमका ,झारखंड
कविता 87/11 -10- 18

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