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7 Oct 2018 · 2 min read

कृषि प्रधान देश का कृषक वो कहलाता है !

बच्चों का पेट काट कर जो, बीज मही में बोता है
कृषि प्रधान देश का कृषक वो ही कहलाता है ।

दुनियाँ का भूख मिटाने को ,जो दिन रात परिश्रम करता है
सपने में भी जो लहलहाते खेतों को ही अक्सर देखा करता है।

कृषक है वो माटी में जो लोट-पोट कर खेला करता है
उस कृषक के लिये, मही ही उसकी माता है।

घाम जिसको जला न सके, तमी जिसे डरा न सके
इन्द्र की माया जाल, जिसे अपने पथ से डिगा न पता है।

सोने और चाँदी की चमक भी जिसको पथ भ्रषट न करने पाता है
उस कृषक के लिये, मही ही उस की माता है।

खुद को भूखा रख के जो औरों का भूख मिटाता है
जिसकी आद्र रुदन को भगवान भी सुनने नहीं पाता है।

बियाबान उसका जीवन, कर्म फल मिल नहीं पता है
वर्तमान जल रहा, भविष्य में भी छाया अंधियारा है।

सियासत और तरक्की जिसको बेबस और लाचार करे
अपनी हक की बात भी जो खुल के कह नहीं पाता है।

गिरबी रख के अपनी माँ [खेत] को कर्ज जो सिर पे लेता है
चुका न पाये तो बेबस हो, किसी पेड़ से खुद को लटकता है।

गर्दन टेढ़ी मुख से भी जीभ बाहर को छलक आता है
जीवन क्या मरण में भी जो तनिक सुख नहीं पाता है।

शासन तो क्या भगवान का भी दारुण दिल पिघल नहीं पाता है
हाथ बंधे हैं जीभ बंधे हैं बस आँखों ही से अश्रु छलकता है।

उस कृषक का इस जग में न कोई बिधि न कोई बिधाता है
बारहो मास जो बस बिन तेल दिए सा जल -जल जाता है।

कृषि प्रधान देश का कृषक वो कहलाता है,
उस कृषक के लिए मही ही उस की माता है।

⇝ सिद्धार्थ ⇜

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