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2 Oct 2018 · 1 min read

रदीफ हूँ मैं फ़कत और काफ़िया तू है

ग़ज़ल (बह्र – मुजतस मुसम्मन मकबून महज़ूफ)

रदीफ हूँ मैं फ़कत और काफिया तू है।
मेरी ग़ज़ल है मुकम्मल जो ज़ाविया तू है।।

ये मयकशी में बड़ा लुत्फ़ आ रहा है मुझे।
मेरे सुरूर ए मुहब्बत का साक़िया तू है।।

न जुस्तजू है मुझे अब किसी भी मंज़िल की।
मुझे अज़ीज़ सफ़र मेरा साथिया तू है।।

करार-ओ-चैन-ओ सुकूं मेरा छीन कर बैठा।
जो राज दिल पे करे ऐसा माफिया तू है।।

हुनर भी खूब तुझे ये” अनीश “है आता।
हँसा दिया है बड़ा ही मज़ाकिया तू है।।
—-अनीश शाह

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