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28 Sep 2018 · 1 min read

वो तस्वीर

वो तस्वीर
उस तस्वीर के अंतस में झाँक कर देखा
जिन्दगी की कसौटी पर आँक कर देखा
निर्निमेष पलकें
अपलक निहारती आसमाँ को
दूर-सुदूर क्षितिज के उस पार।
कुछ ढूंढ रही है
शायद विधाता को
कर सके जिसपे
अपने अशेष प्रश्नों का बौछार।
लगता है,कुछ बोल उठेगी
ये पत्थर सी प्रतिमा।
हो जायेंगे गिले शिक़वे
संचित जो असीमा।
जख़्मी सीने में सहेजकर
रखे गए दर्द भरे घाव।
फूट पड़ेंगे,नयनों के कोरों से
बनकर एक सैलाब।
संभव है,सैलाब में डबराये पानी से
दिल पर पड़े अनगिन दाग धुल जाए।
और तिलिस्म की पिटारी खुल जाए।
जिसकी चाभी सिर्फ़ खुदा के पास है।
हमें ऐसा अहसास है।
जिसमें बन्द है
असंख्य अनसुलझे प्रश्न।
अनुत्तरित प्रश्न, यक्ष प्रश्न।
चेहरे पर गहन खामोशी
उसके पीछे दर्द की सर्पिल रेखायें।
क्या किसी तूफ़ाँ की पूर्वसूचना है
या रेखाओं में निहित
असन्तोष से उपजी मनोव्यथाएँ।
इक चाँद को गर्दित कर रहा
ये पीरभरी खामोशी हरजाई।
चंद्रग्रहण है या चाँद पे बदली छाई।
संगमरमर सी खूबसूरत मूरत को
गन्दले कर रहे ये बनैले कास और काई।
काश,उसको इसका भान होता।
लवों पे उसके मुस्कान होता।
खुदा गर सुनता है अपने बन्दों की
मदद गर करता है जरूरतमन्दों की
तो बन्द कर गम की आँधियाँ
उसकी जिंदगी को एक ठौर दे।
दामन में थोड़ी सी खुशियाँ
बस कुछ नहीं तू और दे।

-©नवल किशोर सिंह

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