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26 Sep 2018 · 1 min read

मकड़ी

मकड़ी बुनती रहती जाल
अकड़ अकड़ कर चलती चाल

कभी कहीं भी कोना पाती
मकड़ी फ़ौरन जाल बनाती

तन्मयता से बुनती रहती
लगता जैसे कभी न थकती

भाती इसको छत दीवारें
घर का सुंदर रूप बिगाड़ें

जाल तोड़ना ही पड़ता है
मन को चैन तभी मिलता है

कारीगरी है मगर कमाल
कैसा सुंदर बुनती जाल

26-09-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

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