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23 Sep 2018 · 3 min read

जिन्दगी की जद्दो जहद के मध्य,ब्यथा और ब्यवस्था की जंग!

विद्युत सयोंजन,- द्वीतीय भाग-

घर नया बनाया तो विद्युत का सयोंजन चाहिए था,
विद्युत कार्यालय गया,और पुछा कैसे मिलेगा संयोजन,
वह बोले औन लाईन करो एपलाई,
तब मिलने आयेगा कोई भाई,
वो बतलायेगा हमारे सर को,कितनी दूर है पोल हमारा,
फिर सर बतलायेंगे,स्टीमेट हमारा,
कितनी लम्बी तार लगेगी,कितना होगा लोड तुम्हारा,
मैने किया वह सब कुछ,जो मुझको बतलाया था,
समय बिता जब कुछ ज्यादा,फिर मैं चकराया था,
क्या हुआ अब तक वो क्यों नही आये ,
क्या भूल गये मेरा पता,या फिर आना भूल गये,
मैने पुन! सम्पर्क साधा,और किया अनुरोध,
उन्होने भी बे हिचक कहा,कर रहे हैं सोध,
कितना बडा है घर तुम्हारा,कितने उसमें प्वाईन्ट लगे हैं
यह सब देख कर तय होगा,लोढ तुम्हारा कितना होगा,
मैने पुन! अनुरोध किया,जो करना है,शीघ्र किजिए,
मुझे अमुक दिन गृह प्रवेश कराना है
उससे पूर्व फर्स पर फिनीसिंग करनी है,
रंग रोगन होना है,बिजली की जांच करनी है,
वह बोले,घिसाई को तो अलग से कनक्सन होगा,
जो टमपरेरी लेना होगा, उसका फिक्स चार्ज है,
पहले वह लेलो,फिर परमानेन्ट मिलेगा,
मैने कहा,बतलाओ कितना जमा कराना है,
वह बोले,लाईनमैन घर पर आयेगा,
और वही बतलायेगा,
उसको ही तुम कनक्सन की फीस देना,
और उसीसे उसकी रसीद ले लेना,
मैनें कहा ठीक है,उसे घर भेज देना,
मैं पैसों का ईन्तजाम कर दूंगा,
और कनक्सन भी ले लूंगा,
वह बोले,आ जायेगा,
और मीटर भी लगा जायेगा,
वह आया भी,पर सिर्फ फीस लेने को,
कनक्सन अभी नहीं मिल सकता,
मीटर उपलब्ध नही हैं, मिलते ही लगा जाऊंगा,
रसीद भी तभी. दे जाऊँगा ,
मैं भी क्या. करता, मजबूरी का नाम ………
मैंने वही किया जो कहा गया,
तब जाकर मुझे सयोजंन का भरोशा मिला,
कनक्सन भी दो चार रोज में मिल पाया,
पर रसीद को वह नहीं दे पाया,
कहा,मिल जायेगी,एकाउन्टेन्ट साहब ,नही आया,
मैनैं अपना काम शुरु किया, और समय रहते पुरा भी ,,अब जब काम लगभग हो गया ,
मुझे सूझा कि क्यों न कनक्सन परमान्नेट करा लें
फिर कौन चक्कर लगायेगा,अभी साथो-साथ हो जायेगा,मैने औन लाईन अपलाई किया,
शीघ्र ही लाईन मैन आकर कह गया,
तुम्हे थ्री फेस कनक्सन लगेगा,
मैने कहा भाई मुझे कोई कुटीर उध्योग नही चलाना है
सिर्फ उजाले को लगाना है,
वह कह गया तो साहब से मिल लेना,
मैं साहब से मिलने गया,और अपनी अर्ज लगाई,
वह बोले घर बहुत बडा है भाई,
ये तो लेना ही पडेगा, कोई अधिकारी आया तो डांटेगा,
मैं,निराश होकर लौट आया, फिर सूझा अपने मित्र से बात करुं,उनकी पहचान बडी है,
मैने उनको अपनी बय्यथा बताई, फिर पुरी कथा. सुनाई,वह बोले काम हो जायेगा,
उनका नाम बताओ,मैने नाम बताया,उन्होने अपना जैक लगाया,और काम बन गया,
थ्री फेस से टू फेस हो गया,
मैने भी समय नही गवांया,शीघ्र ही धन जमा कराया,
अब नया कनक्सन लगना था,टम्परेरी हटना था,
लाईन मैन से मैं मिला,और अपना उदेश्य बतलाया,
वह भी आकर मीटर उतार गया,दुसरा लगेगा कह कर चला गया,अब मैं अन्धरे में क्या करता,
पुन!अनुनय विनय की, तब जाकर,सयोंजन पाया,
पर अभी टम्परेरी की जमानत जमा थी,
पर रसीद नही मिली थी उसके लिेए,घुमा,
रसीद मिलना कठीन हो गयी,खुब घुमाया,
तब जाकर. रसीद ले पाया,
तो देखा,उसमें जितना बतलाया था,वह नही छपा था,
जब समझा की यह रसीद न मिलने का कारण क्या है,
फिर भी मैने आस ना छोडी,टम्परेरी का बील लिया,
और जो मेरा रसीद के अनुसार जमा था,
उसको दिखलाकर, बील का समायोजन करवाया,
शेष जो बचा उसको लेने का चक्कर चलाया,
दो माह बाद वह पैसा मैने वापस पाया,
जो. ले दे कर था बच पाया,
आसां नही है सयोंजन लेना,यह मेरी समझ में आया ।

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