गरिबी र अन्याय
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
ये सुबह खुशियों की पलक झपकते खो जाती हैं,
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मनवा मन की कब सुने, करता इच्छित काम ।
*बेचारे लेखक का सम्मान (हास्य व्यंग्य)*
*Mata pita ki izzat hi sarvsheshtha dharma hai*
दस रुपए की कीमत तुम क्या जानोगे
देखिए लोग धोखा गलत इंसान से खाते हैं
मंज़िल को तुम्हें यदि पाना हो ,तो चलते चलो तुम रुकना नहीं !
उसकी गलियों में कदम जब भी पड़े थे मेरे।