Badhiya
इस शीर्षक पर चर्चा के लिए आपको सर्वप्रथम साधुवाद।
डिम्पल जी, ऐसी कई नन्ही जानें बल्कि बाल श्रम से तुलना करें तो जातिगत आरक्षण के कारण (वास्तविकता की दृष्टिकोण के आधार पर अकारण) कुर्बान हो रही हैं।
यदि बाल श्रम से 10 तो वहीं जातिवाद और उसी जातिवाद के आधार पर स्थापित, मात्र मलीन व तुच्छ राजनीति के उद्देश्य से जो बलपूर्वक घसीटा जा रहा है, जिसे जातिगत आरक्षण से सम्बोधित किया जा रहा है के अंतर्गत कुरबानों की संख्या 100 या 1,000 होती है सम्भवतः।
बाल श्रम से निर्धन बच्चे रोटी और कुछ धन कपड़े पा भी लेते हैं सुनिश्चित रूप से किन्तु जातिगत आरक्षण के अधीन तो अनारक्षितों को रोटी भी नसीब होना दुर्लभ होना सम्भव होते देखा जा सकता है।
मेधा बाजार में नीलाम होती है, अपमानित होती है और जाति के कारण मेधा को छोड़ कर मूर्खता को सम्मान मिलता है।
जय हिंद
जय मेधा
जय मेधावी भारत।।
साथ रहें,
संगठित रहें।
कविता का उद्देश्य समझने के लिए धन्यवाद बात जन जन तक जानी चाहिए
आभार।
साथ रहें,
संगठित रहें।।
???
हार्दिक आभार