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ताज़ पर द़ाग की फ़िक्र है तुम्हे पर याद नही उन कारीगरों की कुर्बानी जिनके काटे हाथ उस ज़ालिम शहंशाह ने नही तो एक से बढ़कर ताजमहल इस जहाँ मे होते इस ताजमहल के बाद।
ताज़ पर द़ाग की फ़िक्र है तुम्हे पर याद नही उन कारीगरों की कुर्बानी जिनके काटे हाथ उस ज़ालिम शहंशाह ने नही तो एक से बढ़कर ताजमहल इस जहाँ मे होते इस ताजमहल के बाद।