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मातृ प्रेम की बाते पढ़ कर,
मानो लौट आया वो बचन
ह्रदय समर्पण सर्वश्व अर्पण ll

सुन्दर वर्णन किया है आप ने उस बचपन की यादें ताजा कर दिन l

हे “पथिक”
न होना तुम,कभी व्यथित,
राह में काटे आएंगे,
शोले बन बादल आएंगे,
पर हौसले से ही उड़ान भरना,
नही कभी भीअभिमान करना,
नित,निरंतर के यत्नो से,
पथ्थर भी पानी बन जाते हैं,
हौसले ज़ज़्बे और नित प्रयास से
देखो वो कैसे माझी बन जाते हैं,
है कौन धरा पर ऐसा,
किस पर नही ये बादल बरसा,
विपदा में उलझ न जाओ बस,
द्वन्द जीतो बाहर आओ,
सच है विपदा जब आती है,
निंदा तिरस्कार अपमान ही लाती है,
पर रहना तुम धैर्यवान,
सहनशील बन पीना अपमान,
ये गुड़ सहज नहीं आते हैं,
इसको तो विपदा ही लाते हैं,
जो तुम जीवन ऐसे जीते,
सदा रहोगे तुम जीते !!!
मृदुल- एक पथिक

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