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झुक आई बदरिया सावन की ।
सावन की मनभावन की ।
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ , मेहा बरसे ,
भनक पड़ी हरि आवन की ।
– मीरा ।

बहुत सुंदर।

कान्हा की चर्चा सूंदर ही होनी चाहिए…

17 Oct 2016 09:16 AM

Waah ji behtreen gajal hui ji.

धन्यवाद, आपके स्नेह के लिए

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