जीते जी सरकारी नुमाइंदों ने एक नही सुनी माझी की द्वार द्वार भटक कर थक , शौर्यवान ने खुद ही पट्टगर चटका देने का जिम्मा लिया और अंततः पूरे जीवन को घोल कर चट्टान तोड़ ही डाला ….
बेशर्मी का आलम तो देखो जी यही सरकारी नुमाईंदे जिनकी खुद की जिम्मेदारी थी उस सड़क को बनाने की अब फोटो खिंचवाने का नया अड्डा बना लिया ..
और उस फोटो को FB पर लगा कर बोलते हैं
” माझी जी को में साटांग दंडवत करता हूँ !’
“दशरथ मांझी – मेरा सलाम”
दुस्तंत्र,भयाह्वः,चट्टान के सामान अहंकार को खंड-विखंड कर देने वाला था वो माझी,
इस विभद्दस,कुरूप तंत्र को आइना दिखलाने वाला था वो माझी,
इस अचेत, निर्मम स्वभाव को परिश्रम के शौर्य से दफ़्न कर देने वाला था वो माझी, पद,महान,गौरव-गाथा झूठी,शान को तार-तार कर देने वाला था वो माझी,
हौसला,शाहस,फौलाद सा अडिग,
इन शब्दों को एक और मुकाम देंने वाला था वो माझी,
आदर्शवाद,और झूठे दर्शन-शास्त्र की झूठी उड़ान को पाँवो तले कुचल कर रख देने वाला था मांझी,
एक साधारण सा दिखने वाला “आम आदमी”था वो “दशरथ मांझी”
लोक-प्रशासन,सत्ता-संघर्ष राजनीति को
चुनौती देने वाला था वो माझी,
नतमस्तक,सास्टांग-दंडवत का ढोंग न करो ,
प्रह्लाद से ध्रुव बन तुम्हे इस योग्य भी कहां छोड़ने वाला था वो माझी,
जीते जी सरकारी नुमाइंदों ने एक नही सुनी माझी की द्वार द्वार भटक कर थक , शौर्यवान ने खुद ही पट्टगर चटका देने का जिम्मा लिया और अंततः पूरे जीवन को घोल कर चट्टान तोड़ ही डाला ….
बेशर्मी का आलम तो देखो जी यही सरकारी नुमाईंदे जिनकी खुद की जिम्मेदारी थी उस सड़क को बनाने की अब फोटो खिंचवाने का नया अड्डा बना लिया ..
और उस फोटो को FB पर लगा कर बोलते हैं
” माझी जी को में साटांग दंडवत करता हूँ !’
“दशरथ मांझी – मेरा सलाम”
दुस्तंत्र,भयाह्वः,चट्टान के सामान अहंकार को खंड-विखंड कर देने वाला था वो माझी,
इस विभद्दस,कुरूप तंत्र को आइना दिखलाने वाला था वो माझी,
इस अचेत, निर्मम स्वभाव को परिश्रम के शौर्य से दफ़्न कर देने वाला था वो माझी, पद,महान,गौरव-गाथा झूठी,शान को तार-तार कर देने वाला था वो माझी,
हौसला,शाहस,फौलाद सा अडिग,
इन शब्दों को एक और मुकाम देंने वाला था वो माझी,
आदर्शवाद,और झूठे दर्शन-शास्त्र की झूठी उड़ान को पाँवो तले कुचल कर रख देने वाला था मांझी,
एक साधारण सा दिखने वाला “आम आदमी”था वो “दशरथ मांझी”
लोक-प्रशासन,सत्ता-संघर्ष राजनीति को
चुनौती देने वाला था वो माझी,
नतमस्तक,सास्टांग-दंडवत का ढोंग न करो ,
प्रह्लाद से ध्रुव बन तुम्हे इस योग्य भी कहां छोड़ने वाला था वो माझी,