Comments (3)
12 Aug 2016 01:49 PM
आपकी इस उत्कृट रचना पर आपको हार्दिक बधाई खासकर ये बन्द बहुत पसन्द आया
दीवारों केकान हो गएअवचेतन-बहरेबात करेंकिससे हम मिलकरदर्द हुए गहरेचीख-चीख करमरी पिपासाभूख चली पीहरप्रत्याशा हरियर होने कीपर, ज़ज़्बात नहीं।
11 Aug 2016 09:10 PM
आपके उत्कृष्ट लेखन को नमन अवनीश जी ।
बहुत खूब अवनीश जी