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25 Jul 2016 10:42 PM
लगा है नाचने अब मोर मन का
घिरी फिर सावनी देखो घटा है ……सुंदर.
आदरणीया डॉ.अर्चना गुप्ता जी सादर, अच्छी गजल कही है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.
महक कर नाचता ये डालियों पर
हवा ने फूल से क्या कह दिया है………….तनाफुर के एब को देख लें.
गया है टूट इतना ‘अर्चना’ दिल
कि लेना साँस भी लगती सजा है …….लगती या लगता देख लें. सादर.
हमेशा ही चाँद कब रात का है !!
वाह वाह्ह्ह्ह् वाहह, कमाल का लिखा है