Comments (2)
24 Jul 2016 11:18 AM
वाकई, . . सच्चाई को उज़ागर करती आपकी लेख, नमन आपको, . . ! मगर वो कहावत है रघुरीत सदा चली आयी , , मेरी इक लेख की इक पंक्ती है –
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चरित्रवान है कोई , कोई बेहया है
ये वक्त की पुकार ही है
समझते सब, जानते भी सभी हैं
मगर न भाव है कहीं न कहीं दया है !
सच है ये । बहुत मार्मिक लिखा