Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (6)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
24 Jul 2016 10:09 AM

आदरणीय कुलदीप जी अच्छी गजल है. किन्तु अंत के दोनों ही अशआर गड़बड़ा गए हैं. देख लें
ज़रा सी हुस्न की दौलत हमारे नाम भी कर दे
ये दौलत जो मिले हमको तो हम सुलतान हो जाये/ जाएँ

न बदले तुम न बदले हम न बदले ये सफ़र ‘माही’
हमारा तुम तुम्हारा हम चलो ईमान बन जाये……….बन जाए / हो जाए ?

25 Jul 2016 12:14 PM

जी अशोक जी ! आपने गौर किया और गलतियों की ओर ध्यान दिलाया , इसके लिए आपका धन्यवाद | मैं इन्हें दूर करता हूँ |

वाह्ह्ह्ह कुलदीप जी लाजवाब 1

25 Jul 2016 12:13 PM

आपका तहेदिल से शुक्रिया जी

वाह! माहीभाई जी, खूव सूरत गजल के लिए दिली दाद कुबूल करें।

25 Jul 2016 12:12 PM

आपका तहेदिल से शुक्रिया जी

Loading...