Waaaah waaaaah amod sb bahut do baher me sher dhaalna jn bahut aasaan nahi hota ye qabile taareef hai…..ye koshish ilme arooz k tahet bahut hi mushkil Ho jaata hai …..bahut aala tareen asaatiza hi sahi mana me yahaN kamyaab Ho sakte haiN …..magar ye tajarbaat zyadatar asatiza ghair zaroori samajhte haiN……..waharhaal aapki koshish behtareen hai daad haazir hai waaaaaaaaaah
सर सोंच इंसान से कुछ भी करा सकती है । मै अरूज का बलकुल भी जानकर नही हु । पर दैव प्रभाव से कुछ लिख लेता हूँ। ये दो बहर में कहना मेरे लिए बिलकुल कठिन नही था अगली एक रचना की कोशिस कर रहा हूँ जो चार बहर 3 काफिया 3 रदीफ़ निभा रही है । आप सभी का आशीर्वाद रहा तो जल्द गजल की बिधा का रंग देकर आप के समक्ष पेश करूँगा
शुक्रिया
अगली रचना जल्द पेश करूँगा
Aap sbhi ka shukriya nmn
वाह बहुत खूब
वाह ! खूबसूरत गजल कही है आदरणीय आमोद जी . बहुत बधाई स्वीकारें. तीसरे शेर में तकाबुल-ए-रदीफ़ का एब आ गया है और इसके अगले शेर का सानी कामिसरा देखें //बस यही ख्वाहिस रहेगी वो दिये जलते मिले।।// मिले या मिलें // ख्वाहिस को भी ख्वाहिश कर लें. सादर.
वाहह्ह्ह् बहुत बधिया प्रयास अगर सकता सयही कर ले तो कैसा रआहे? व्आह्ह्ह्ह
उम्दा गज़ल