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1 Oct 2016 06:36 AM

उम्दा गज़ल

19 Jul 2016 07:49 PM

Waaaah waaaaah amod sb bahut do baher me sher dhaalna jn bahut aasaan nahi hota ye qabile taareef hai…..ye koshish ilme arooz k tahet bahut hi mushkil Ho jaata hai …..bahut aala tareen asaatiza hi sahi mana me yahaN kamyaab Ho sakte haiN …..magar ye tajarbaat zyadatar asatiza ghair zaroori samajhte haiN……..waharhaal aapki koshish behtareen hai daad haazir hai waaaaaaaaaah

20 Jul 2016 11:16 AM

सर सोंच इंसान से कुछ भी करा सकती है । मै अरूज का बलकुल भी जानकर नही हु । पर दैव प्रभाव से कुछ लिख लेता हूँ। ये दो बहर में कहना मेरे लिए बिलकुल कठिन नही था अगली एक रचना की कोशिस कर रहा हूँ जो चार बहर 3 काफिया 3 रदीफ़ निभा रही है । आप सभी का आशीर्वाद रहा तो जल्द गजल की बिधा का रंग देकर आप के समक्ष पेश करूँगा

20 Jul 2016 11:19 AM

शुक्रिया
अगली रचना जल्द पेश करूँगा

19 Jul 2016 04:42 PM

Aap sbhi ka shukriya nmn

19 Jul 2016 11:39 AM

वाह बहुत खूब

19 Jul 2016 11:16 AM

वाह ! खूबसूरत गजल कही है आदरणीय आमोद जी . बहुत बधाई स्वीकारें. तीसरे शेर में तकाबुल-ए-रदीफ़ का एब आ गया है और इसके अगले शेर का सानी कामिसरा देखें //बस यही ख्वाहिस रहेगी वो दिये जलते मिले।।// मिले या मिलें // ख्वाहिस को भी ख्वाहिश कर लें. सादर.

वाहह्ह्ह् बहुत बधिया प्रयास अगर सकता सयही कर ले तो कैसा रआहे? व्आह्ह्ह्ह

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