ये रचना हमे उस काल मे आज से कुछ पीछे ले जाती है जहाँ मनुष्य सीधे प्रकृती के मध्य रहकर पूर्ण आनंद प्राप्त करता था न कोई तनाव न कोई अलगांव संयुक्त परिवार एवम दोस्तो के बीच अल्हड़ जीवन जीता था कहा गए वो दिन आज की पीढ़ी इसे कैसे अनुभव कर सकती है वो पंक्ति याद आती है ” चिंता रहित खेलना खाना और फिरना निश्चय स्वच्छंद ,कैसे भूला जा सकता है ,बचपन का अतुलित आनंद” नीम का वो पेड़ भी हमे आज भी बुलाता है और अतीत के आनंद से मिलाता है ।
ये रचना हमे उस काल मे आज से कुछ पीछे ले जाती है जहाँ मनुष्य सीधे प्रकृती के मध्य रहकर पूर्ण आनंद प्राप्त करता था न कोई तनाव न कोई अलगांव संयुक्त परिवार एवम दोस्तो के बीच अल्हड़ जीवन जीता था कहा गए वो दिन आज की पीढ़ी इसे कैसे अनुभव कर सकती है वो पंक्ति याद आती है ” चिंता रहित खेलना खाना और फिरना निश्चय स्वच्छंद ,कैसे भूला जा सकता है ,बचपन का अतुलित आनंद” नीम का वो पेड़ भी हमे आज भी बुलाता है और अतीत के आनंद से मिलाता है ।