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घणी फूटरी मांड़ी सा,
कल्पना रो ओ संसार किणी इक भाषा रो धणी ही कौनी।
आपणी मायड़ भाषा रै मांही थै थारां हियै रा भाव घणा चौखा अर जीवतां रुप सूं मांड़्या

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