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बढ़िया लिखा है आपने, मिथकीय पुस्तकों और उससे बनी व्यवस्था की तार्किक आलोचना जरूरी है रचनाओं में भी।
कविता में थोड़ी अशुद्धियां चली गई हैं। जैसे, एक जगह शूद्र की जगह शुद्र है।
धन्यवाद सर, अशुद्धियों का ध्यान रखूंगा..। सर यह तार्किक प्रतिक्रिया है, जब सभी लोग हरा चश्मा लगाकर देखें तो सर कोई ना कोई प्रतिक्रिया स्वरूप सामान्य शीशे का चश्मा लगा ही लेता है। क्योंकि प्रकृति में हर स्थान मन भावन हरा भरा नहीं है…।
बढ़िया लिखा है आपने, मिथकीय पुस्तकों और उससे बनी व्यवस्था की तार्किक आलोचना जरूरी है रचनाओं में भी।
कविता में थोड़ी अशुद्धियां चली गई हैं। जैसे, एक जगह शूद्र की जगह शुद्र है।
धन्यवाद सर,
अशुद्धियों का ध्यान रखूंगा..।
सर यह तार्किक प्रतिक्रिया है, जब सभी लोग हरा चश्मा लगाकर देखें तो सर कोई ना कोई प्रतिक्रिया स्वरूप सामान्य शीशे का चश्मा लगा ही लेता है। क्योंकि प्रकृति में हर स्थान मन भावन हरा भरा नहीं है…।