जब तुम शाम को आओगे तो तुमको एक तुम्हारे जैसे ही लड़के से मिलवाऊंगा
सागर ने प्रश्नवाचक निगाहों से प्रताप की आँखों में देखा तो उसे उनमें संदेह के बादल घुमड़ते दिखे। क्या सोच रहे हो प्रताप?
छोटी-छोटी खरोंचें उसकी दोनों कोहनियों पर भी थीं।
वैसे तो मैं तुम्हारी ये बात नहीं मानता। सुदामा-श्रीकृष्ण जैसे बहुत उदाहरण हैं पर मैं तुम्हे बताऊँ की हमारी तुम्हारी तो बराबरी की हैसियत है। एक हैसियत। कैसे? प्रताप ने पूछा।
सागर को सोच में पड़ा देख उस लड़के ने हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरी। इतनी सुन्दर मुस्कान थी उसकी कि सागर का सारा डर एवं भ्रम जाता रहा।
ये मेरे पापा की दुकान है। बैठ जाओ इस पर, आज पापा ने काम से छुट्टी कर रखी है। अरे! बैठ भी जाओ, सागर को संकोच में देखकर प्रताप ने थोड़ी जबरदस्ती से बिठा दिया।
बस तुम्हारे माँ-बाप के सात संतानें हैं तो हमारे माँ-बाप की सिर्फ दो। फर्क इसी से पढ़ जाता है।
तुम सचमुच में लुल्ल हो क्या। मेरे पापा की इस दुकान को देखकर भी नहीं समझे।