Comments (9)
31 May 2023 09:53 AM
मुश्किल से मिलता है
फिर से, बिगड़ा हुआ हिसाब-किताब।
29 May 2023 12:53 PM
टुकड़े-टुकड़े काँच जोड़कर
बनता नहीं दोबारा दर्पण
29 May 2023 03:40 AM
निकल पड़े बहक कर घर से
लौटे कैसे फिर वो पाँव,
हाय रे बिडम्बना-
29 May 2023 02:21 AM
कैसे बने लकड़ी फिर से
जो भई कोयला फिर राख़
27 May 2023 02:20 PM
पत्ते छूट जाएँ तो
दरख़्त देते नहीं छाँव
26 May 2023 01:28 PM
कुछ तो बह जायेगा जरुर
जब टूटेंगे तटबन्ध।
24 May 2023 05:59 AM
मार्मिक चित्रण।
24 May 2023 02:21 PM
धन्यवाद
संजीवनी गुप्ता जी धन्यवाद 🙏