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सावन की फुहार में,
भीगना है मुझे ।
महसूस करना है तपन को,
जेठ की दुपहरी में, रेत में,
आलिंगन करना है शीत का,
पूष की ठिठुरी बर्फ में ।
हर एक ऋतु देखूँगा मैं,
तुम ऋतुएँ बदल-बदल लाओ

जानना है मुझे,
सपनों का सँसार क्या है ।

22 May 2023 03:39 PM

बहुत सुंदर।

धन्यवाद आपका अतुल जी बहुत बहुत आभार 🙏🙏

देखना है मुझे,
उस क्षितिज के पार क्या है

महसूस करना है तपन को,
जेठ की दुपहरी में, रेत में

हर एक ऋतु देखूँगा में,
तुम ऋतुएँ बदल-बदल लाओ

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