बहुत सुंदर आलेख है। मैंने आपकी इस रचना को विहंगम दृष्टि से पढ़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे आपने देश के करोड़ों लोगों के दिलों की बात को रख दिया है। यदि मैं यह कहूँ कि आपने आज के सरकारी तंत्र के साथ-साथ लोकतंत्र के चेहरे पर चढ़े आवरण को हटाकर उसका नग्न रूप दिखला दिया है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाज को बचाने के लिए मुखर होना पड़ेगा नहीं तो समाज की हालत बद से बदतर होती जायेगी। आपकी सोच को सलाम करता हूँ और आपको कोटि कोटि हार्दिक देता हूँ।
बहुत सुंदर आलेख है। मैंने आपकी इस रचना को विहंगम दृष्टि से पढ़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे आपने देश के करोड़ों लोगों के दिलों की बात को रख दिया है। यदि मैं यह कहूँ कि आपने आज के सरकारी तंत्र के साथ-साथ लोकतंत्र के चेहरे पर चढ़े आवरण को हटाकर उसका नग्न रूप दिखला दिया है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाज को बचाने के लिए मुखर होना पड़ेगा नहीं तो समाज की हालत बद से बदतर होती जायेगी। आपकी सोच को सलाम करता हूँ और आपको कोटि कोटि हार्दिक देता हूँ।
आपकी विवेचना का हार्दिक आभार ! 🙏💐