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बहुत ही सुन्दर ।
यदि,
अंतिम बंध इस तरह हो जाता,
“मानकर भी, अनमनी है इस शहर में।”
सादर

क्षेत्रपाल शर्मा

लाजवाब वाह वाह।
जगमगाती चांदनी हो तुम इस शहर की। टिमटमाती कामिनी हो तुम इस शहर की।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम

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