👌👌
एक मंथरा के कारण
दशरथ का था घर बिखर गया
ईश्वर होकर भी श्री राम प्रभु को
था वनवास सहना पड़ा।
मन की मंथरा उठ-उठ कर
जब मन में शोर मचाती है
रिश्तों के माला की मोती
पल में बिखेर वो जाती है।
झूठ को भी सच का चोला
अब यहाँ पहनाया जाता है
एक झूठ सच करने को
सौ सत्य छुपाया जाता है।
अब घर-घर में राजनीति के
खेल खेले जाते हैं
अपनों पर ही अपनों के द्वारा
तीर चलाए जाते हैं।
अपने अंदर कोई न झाँके
दूजे पर उंगली उठाते हैं
खुद के घर शीशे के हैं
फिर भी पत्थर चलाए जाते हैं।
सौ-सौ चूहे खाकर के
जब बिल्ली हज को जाती है
रिश्तों में आग लगाने को
एक मन की मंथरा ही काफी है।
👌👌
एक मंथरा के कारण
दशरथ का था घर बिखर गया
ईश्वर होकर भी श्री राम प्रभु को
था वनवास सहना पड़ा।
मन की मंथरा उठ-उठ कर
जब मन में शोर मचाती है
रिश्तों के माला की मोती
पल में बिखेर वो जाती है।
झूठ को भी सच का चोला
अब यहाँ पहनाया जाता है
एक झूठ सच करने को
सौ सत्य छुपाया जाता है।
अब घर-घर में राजनीति के
खेल खेले जाते हैं
अपनों पर ही अपनों के द्वारा
तीर चलाए जाते हैं।
अपने अंदर कोई न झाँके
दूजे पर उंगली उठाते हैं
खुद के घर शीशे के हैं
फिर भी पत्थर चलाए जाते हैं।
सौ-सौ चूहे खाकर के
जब बिल्ली हज को जाती है
रिश्तों में आग लगाने को
एक मन की मंथरा ही काफी है।
आपकी लेखनी में थोड़ा संशोधन😊
जी धन्यवाद अभी शब्दों पर मेरी पकड़ ज्यादा अच्छी नहीं है ।आपका बहुत – बहुत आभार