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🌸हे लोहपथगामिनी 🌸🌸 गंतव्य तक पहुंचाती । नीले लाल हरे रंग में नजर आती। तुम्हारे आने की संभावना को
उद्घघोषिका पल पल की सुनाती। हमारे दिल की धड़कनें बढ़ाती।
तुम्हारी देर से आने की सूचना आती । हमरे दिल को बहुत दुखाती।
है लोह पथ गामिनी तुम समय से आती। सच कहूँ मेरे चेहरे का नूर बन जाती।
ऐसा लगता की घने कोहरे से रोशनी की किरण निकल आई हो ।
मन उद्वेलित तुम से मिलन को । तुम्हारे झरोखे से झांकना मुझको भाता।
दोड़ती हो तुम दो पटरियों पर । भागते हुए से पैड़ लगते ।
साथ मेरा मन भी भागता । ऊंचे पहाड़ नदियों को ताकता ।
अंदर की रोनक खट्टी मीठी गोलियां चाय संग मूँगफली की बोलियाँ।
कभी गूंजती रागिनी । भूख की खातिर मांगती छोरियाँ।
अधूरी मानव देह । तालियों की भिन्नता है ।
तुम्हारी अधुरी पहचान । तुम्हारी अधुरी संरचना ।
मांगने को मजबूर तुम। समाज कब देगा तुम्हे तुम्हारा स्थान ।
यहाँ दिव्यांग भी मान पाते । अधुरे पन का जीवन बिताते।
न जाने कब ये स्वर सार्थक होंगे। विविधता में एकता के स्वर गुंजने लगेंगे।
आपको अपनी रचना कमेंट में नहीं लिखनी है। नई पोस्ट में अपनी रचना लिखें और उसमें Daily Writing Challenge का टैग जोड़ें।
🌸हे लोहपथगामिनी 🌸🌸
गंतव्य तक पहुंचाती ।
नीले लाल हरे रंग में नजर आती।
तुम्हारे आने की संभावना को
उद्घघोषिका पल पल की सुनाती।
हमारे दिल की धड़कनें बढ़ाती।
तुम्हारी देर से आने की सूचना आती ।
हमरे दिल को बहुत दुखाती।
है लोह पथ गामिनी तुम समय से आती।
सच कहूँ मेरे चेहरे का नूर बन जाती।
ऐसा लगता की घने कोहरे से
रोशनी की किरण निकल आई हो ।
मन उद्वेलित तुम से मिलन को ।
तुम्हारे झरोखे से झांकना मुझको भाता।
दोड़ती हो तुम दो पटरियों पर ।
भागते हुए से पैड़ लगते ।
साथ मेरा मन भी भागता ।
ऊंचे पहाड़ नदियों को ताकता ।
अंदर की रोनक खट्टी मीठी गोलियां
चाय संग मूँगफली की बोलियाँ।
कभी गूंजती रागिनी ।
भूख की खातिर मांगती छोरियाँ।
अधूरी मानव देह ।
तालियों की भिन्नता है ।
तुम्हारी अधुरी पहचान ।
तुम्हारी अधुरी संरचना ।
मांगने को मजबूर तुम।
समाज कब देगा तुम्हे तुम्हारा स्थान ।
यहाँ दिव्यांग भी मान पाते ।
अधुरे पन का जीवन बिताते।
न जाने कब ये स्वर सार्थक होंगे।
विविधता में एकता के स्वर गुंजने लगेंगे।
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